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अमर शहीद बैकुंठ शुक्ल की 91वी शहादत दिवस14मई ..विशेष

अमर शहीद बैकुंठ शुक्ल  की 91वी शहादत दिवस14मई  ..विशेष
Ramnath Vidrohi
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।।।अमर शहीद बैकुंठ शुक्ल  की 91वी शहादत दिवस14मई साथ ही 118वी जयन्ति 15 मई 2025के अवशर पर विशेष आलेख ।।।
**गंगोत्री प्रसाद सिंह (वरीय अधिवक्ता )
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  परिचय ,,,,  जन्म,,,  15 मई 1907 
 मृत्यु,,,    केंद्रीय कारागार गया फांसी 14 मई 1934
, वैशाली जिले के लालगंज प्रखंड के ग्राम जलालपुर  में एक सामान्य भूमिहार ब्राह्मण  किसान  बाबू राम बिहारी शुक्ल के पुत्र के रूप में बैकुण्ठ शुक्ल का जन्म 15 मई 1907 को  हुआ ।इनके दादा कानाम मन्नू शुक्ल था और इनकी शादी छपरा जिला के परसा थाने के महमदपुर गांव के बाबू चक्रधारी सिंह की लड़की  बवूनी राधिका देवी के साथ 11मई 1927 को हुई थी।
   शिक्षा। ,,,
         प्राइमरी शिक्षा अपने गांव के प्राइमरी स्कूल में बैकुण्ठ शुक्ल  ने ली ।मिडिल तक शिक्षा पाने के बाद बैकुण्ठ शुक्ल ने शिक्षक प्रशिक्षण का भरनाकुलर कोर्स किया।सामान्य कद काठी के बैकुंठ शुक्ल एक कुशल तैराक भी थे। गण्डक नदी में घण्टो तैरने में इनका काफी मन लगता था।अपने चचेरे चाचा योगेंद शुक्ल को स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लेते देखते देखते बैकुंठ शुक्ल के मन मे भी क्रांतिकारी बनने की इच्छा हुई लेकिन योगेंद शुक्ल इन्हें अपने साथ रखने को तैयार नही थे । स्वतन्त्रता आंदोलन में अभिरुचि देख इनके पिता ने बगल के गांव मथुरापुर के प्राइमरी स्कूल में इनको  शिक्षक की नौकरी लगवा दी और बैकुंठ शुक्ल मथुरापुर के राज नारायण शुक्ल के घर पर रहते आए, । उनके रहने और भोजन की व्यवस्था राजनारायण शुक्ल की ओर से थी और इसके एवज में बैकुण्ठ शुक्ल उनके परिवार के वच्चे को पढ़ाया करते थे ।  स्कूल में शिक्षक बनने के बाद ही इनकी शादी राधिका देवी के साथ 20 वर्ष की उम्र में हुई ।
     स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी,,,,
       उस समय मुजफ्फरपु का हाजीपुर क्षेत्र  बिहार के स्वतन्त्रता आंदोलन का केंद्र था ।1920 में ग़ांधी जी के हाजीपुर आने के बाद यहा के युवायों में आजादी के प्रति ललक काफी बढ़ी । बिहार के प्रथम सत्याग्रही पण्डित जयनन्दन झा ने हाजीपुर में गांधी आश्रम की स्थापना की और 7 दिसम्बर 1920 में महात्मा गांधी चंपारण जाने के क्रम में यहाआये थे जिस वजह से इस स्थान का नाम गांधी आश्रम हुआ ।यह गांधी आश्रम देश के नरम और गरमदल के क्रांतिकारी आंदोलन का ग़ढ़ था ।1925 आते आते क्रांतिकारी, योगेंद्र शुक्ल, बसावन सिंह ,सारण के राम बिनोद सिंह, बंगाल का क्रांतिकारी फणीन्द्र नाथ घोष सहित देश के अन्य क्रांतिकारियों के हजीपुर के गांधी आश्रम में आना जाना शुरू हुआ ।भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर बाबू योगेंद्र शुक्ल ने देश की आजादी के लिये  हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिक आर्मी का जो गठन 1928 में किया उसमे बाबू योगेंद्र शुक्ल ,राम बिनोद सिंह मलखाचक और फणीन्द्र घोष बिहार उड़ीसा प्रान्त के प्रभारी बनाये गये।



1929 में मुजफ्फरपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बाबू रामदयालु सिंह थे ।सन 1930 में शुरू होने वाले सविनय अवज्ञा आंदोलन की हजीपुर क्षेत्र में तैयारी का भार बाबुकिशोरी प्रसन्न सिंह ,बाबू दीपनारायण सिंह और अक्षवट राय के जिम्मे में मिला ।किशोरी बाबू गांव गांव घूम कर  कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ताओं की भर्ती कर रहे थे ,इसी क्रम में किशोरी बाबू अपनी पत्नी सुनीति के साथ ग्राम मथुरापुर के बाबू राजनारायण शुक्ल के यहाँ एक रात पहुँचे जहाँ किशोरी बाबू की मुलाकात पण्डित बैकुण्ठ शुक्ल से हुई ।बैकुण्ठ शुक्ल लम्बी शिखा ओर त्रिपुंड चन्दन लगते थे जिस वजह से उन्हें लोग पण्डित बैकुण्ठ शुक्ला के नाम से भी बुलाते थे।बैकुण्ठ शुक्ल में देश प्रेम की भावना तो पहले से थी ही और वे किशोरीबाबू और उनकी पत्नी की बातों से काफी प्रभावित हुये लेकिन उन्होंने किशोरीबाबू से अपनी समस्या बताई की उनकी नई नई अभी शादी हुई है यदि उनकी पत्नी उनके साथ देश सेवा के लिये तैयार हो जाय तो वे अपना जीवन खुशी खुशी देश के लिये समर्पित कर देंगे।बैकुण्ठ शुक्ल की इस समस्या के निदान के लिये सुनीति देवी ने वीर उठाया और दो मुलाकात में ही सुनीति ने अपने पति के साथ देश सेवा के लिये तैयार हो गई और सुनीति ने एक फिटिं गाड़ी से राधिका देवी को गांव से भगा कर हजीपुर गांधी आश्रम ले आई और वैकुंठ शुक्ल अपनी पत्नी के साथ गांधी आश्रम में रहने लगे ।
  किशोरीबाबू की पत्नी सुनीति देवी आश्रम और जिले की महिला जथ्था की संगठनकर्ता थी।वे  एक अच्छी घुड़सवार के साथ शस्त्र संचालन में निपुण थी आश्रम में स्वयंसेवको  को आत्म रक्षा के लिये शस्त्र संचालन की ट्रेनिग किशोरी बाबू ओर उनकी पत्नी सुनीति देती थी।बैकुण्ठ शुक्ल को कटार संचालन में सुनीति जी ने ही निपुण बनाया ।बैकुण्ठ शुक्ल को सबसे पहला काम गोरौल के सोन्धो, मलखाचक के गांधी कुटीर और पटोरी के चरखा संघ का काम देखने को मिला ।इन जगहों पर आने जाने की वजह से वैकुंठ शुक्ल का अपने क्षेत्र के सभी सेनानी और क्रांतिकारियों से हुया ।सन 1930 में सविनय अवज्ञान्दोलन के शुरू में हजीपुर के गांधी आश्रम में नमक कानून तोड़ने के लिए हजीपुर औरआस पास के सैकड़ो स्वयंसेवक एकत्रित हुए।
नमक कानून तोड़ने के बाद रामदयालु बावू के निदेश पर किशोरी प्रसन्न सिंह ओर अक्षयवट राय ने बिदुपुर के आस पास के गांवों में टैक्स बन्दी आंदोलन शुरू किया और बैकुण्ठ शुक्ल मुजफ्फरपुर के तिलक मैदान  जो उनदिनों स्वतन्त्रता आंदोलन का केंद्र था अपनी पत्नी के साथ आ गए।बंगाल के क्रांतिकारी रानेन्द्रनाथ रे ने सेवा दल के स्वयंसेवक की कठिन ट्रेंनिग बैकुण्ठ शुक्ल को दिया  ।तिलक मैदान में तिरंगा ध्वज फहराने के जुर्म में बैकुण्ठ शुक्ल को गिरफ्तार कर पटना बांकीपुर जेल में भेजा गयाऔर उनकी पत्नी राधिका हजीपुर गांधी आश्रम लौट आई ।
         क्रांतिकारी बैकुंठ शुक्ल ,,
सन 1931 के शुरुआत में ही अंग्रेजो ने क्रांतिकारियों के आंदोलन को कुचलना शुरू किया।क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद के अल्फ़्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजी पुलिस ने क्रांतिकारी चन्द्र शेखर आजाद को गोलियों से भून दिया  ।लाहौर षड्यन्त केश में दिनांक 23 मार्च 1931 को भुगत सिंह,राजगुरू ओर शुकदेव को फांसी की सजा दी गई ।क्रांतिकारी योगेंद्र शुक्ल और क्रांतिकारी वसावन सिंह को गिरफ्तार कर जेल में दाल दिया गया ।इन सब घटनायों से वैकुंठ शुक्ल के मन मे क्रांति की ज्वाला भड़क उठी ।
      गद्दार फणीन्द्रनाथ घोष,,,,,
     एसेम्बली बम कांड और लाहौर षड्यंत्र कांड  कि वजह  से देश की अंग्रेजी हुकूमत बौखला गई  ।देश मे चारो तरफ क्रांतिकारियों की धर पकड़ होने लगी ।पुलिस ने फणीन्द्र घोष को  पकड़ लिया ।पुलिस की यातना से फणीन्द्र घोष  टूट गया ,कमजोर दिल फणीन्द्र क्रांतिकारी से गद्दार बन गया ।फणीन्द्र घोष ने लालच में आकर क्रांतिकारी साथी भगत सिंह,राजगुरु,शुकदेव, योगेंद्र शुक्ल, बसाबन सिंहआदि को पुलिस से पकड़वा दिया और कोर्ट में इन क्रांतिवीरों के खिलाफ गवाही भी दी जिसवजह से भगत सिंह ,राजगुरु ओर शुखदेव को फांसी की सजा हुई ।फनीन्द्रनाथ घोष ने मौलिनीया डकैती केश, तिरहुत षड्यन्त्र केश, पटना षडयंत्र केश में क्रांतिकारी योगेन्द्र शुक्ल, बसावन सिंह, कपिलदेव राय के खिलाफ गवाही दिया जिस वजह से योगेन्द्र शुक्ल और केदार मणि शुक्ल को 10 वर्ष कालापानी की सजा औऱ वसावन सिंह को भी 10 वर्ष की सजा हुई । गद्दार फणीन्द्र घोष अंग्रेजो से इनाम और धन पाकर बेतिया में रहने लगा और एक बड़ी दुकान का मालिक बन अंग्रेजी सरकार की सुरक्षा में रहने लगा।
      गद्दार फणीन्द्र  नाथ घोषको सजाये मौत का फरमान, 
सन 1932 के अक्टूबर माह में  पंजाव के क्रांतिकारी साथियो का  क्रांति दल के मुख्य किशोरी बाबू के पास गद्दार फणीन्द्र घोष को मौत के घाट उतारने का संदेश प्रप्त हुआ।जिस  के लिय हाजीपुर गांधी आश्रम में क्रांतिदल की बैठक हुई जिसमें
 किसोरी प्रसन्न सिंह,सुनीति देवी ,बैकुण्ठ शुक्ल, अक्षयवट राय   वगैरहउपस्थित हुए । बैठक में फणीन्द्र घोष की हत्या का निर्णय हुआ ।हर सदस्य इस काम को  अंजाम  देने के लिये तैयार थे लेकिन  बैठक में बैकुंठ शुक्ल और चन्द्रमा सिंह को फणीन्द्र को उसके अंजाम तक पहुचाने का दायित्व दिया गया।
    बेतिया जाने के लिये मुजफ्फरपुर मोतिहारी के रास्ते जाने में पुलिस द्वारा पकड़ जाने का डर था जिस वजह बैकुंठ शुक्ल चन्द्रमा सिंह के साथ एक साइकल से  चले और रात्रि में दरभंगा में बैकुंठ शुक्ल अपने ग्रामीण गोपाल नारायण शुक्ल के कमरे पर रुके जो दरभंगा में पढ़ाई कर रहा था और जाते बख्त बैकुंठ शुक्ल ने उससे एक धोती मांग ली और बैकुंठशुक्ल साइकल से ही तीसरे दिन9 नबम्बर 1932 को बेतिया मीनाबाजार सन्ध्या 7 वजे  फणीन्द्र घोष के दुकान पर पहुचे।बैकुंठशुक्ल ने दुकान से थोड़ी दूर पहले ही चन्द्रमा सिंहकोशतर्क रहने को कहते हुये  फणीन्द्र घोष के दुकान में प्रवेश किया और फणीन्द्र घोष के नजदीक पहुचते है बैकुंठ शुक्ल ने अपने धोती के फेटा से अपनी कटार निकली और फणीन्द्र नाथ घोषका सीना चिर दिया और भारत माता का जयघोष करते हुए दुकान से निकले की फणीन्द्र के दोस्त गणेश प्रसाद गुप्ता ने  बैकुंठ शुक्ल को पकड़ लिया ,लेकिन बैकुंठ शुक्ल ने उसके सीने  में कटार भोंक दिया और वह भी जमीन पर गिर गया,रास्ते मेएक ओर भी व्यक्ति रोकने की कोशिश की जिसे भी कटार ने शिकार बनया और बैकुंठ शुक्ल भारत माता का जय घोष करते हुए  चन्द्रमा सिंह के साथ भाग लिये और रास्ते मे साइकल छोड़कर गण्डक नदी पार कर छपरा जिला निकल गए फनीन्द्रनाथ घोष के सुरक्षकर्मि सिपाही सहदेव सिंह के बयान परबतिया थेन में केश न 8 वर्ष 1932 दर्ज हुआ
   फणीन्द्र  नाथ घोष की दिन दहाड़े पुलिस सुरक्षा में हुई हत्या से अंग्रेज बौखला गए और क्रान्तिकारियो को पकड़ने के लिये इनाम की घोषणा की गई।फणीन्द्र घोष का अस्पताल में17 नबम्बर 1932 तक इलाज चला लेकिन फणीन्द्र ने  बैकुंठ शुक्ल का नाम पुलिस के सामने मरने तक नही लिया । फणीन्द्र का साथी गणेश गुप्ता भी 20 नबंर को मर गया ।
  बैकुंठ शुक्ल ने फणीन्द्र की हत्या के बाद जो साइकल रास्ते मे छोरी उसी पर दरभंगा में अपने ग्रामीण से ली गई धोती छूट गई जिसके सहारे पुलिस ने दरभंगा से गोपाल नारायण शुक्ल को गिरफ़्तार किया जिसने पुलिस के डर से बैकुंठ शुक्ल के बारे में बता दिया ।5जनवरी1933 को चन्द्रमा सिंह को कानपुर से गिरफ्तार किया गया और जव बैकुंठ शुक्ल हाजीपुर पुलहोकर सोनपुर की ओर जा रहेथे की  वही पुलिस से मुठभेड होगई ओर पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गए ।वैकुंठ शुक्ल ओर चन्द्रमा सिंह को मोतिहारी जेल में रखा गया।
   मुजफ्फरपुर जिला न्यायालय में टी, ल्युबि सत्र न्यायाधीश के समक्ष सम्राट बनाम बैकुण्ठ शुक्ल वगैरह नाम से   मोकदमा,,,          
   फणीन्द्र नाथ घोष और उसके साथी की हत्या के आरोप में बैकुंठ शुक्ल और चन्द्रमा सिंह को मोतिहारी जेल में रखा गया लेकिन मुकदमा मुजफ्फरपुर सेसन कोर्ट में चला  मोकदमे के दौरान  सरकार की तरफ से कुल 91 अभियोजन साक्ष्य बैकुंठ शुक्ल के विरोध में पेश किया गया और न्यायालय में बैकुंठ शुक्ल को दुर्दान्त अपराधी सिद्ध करने का प्रयास किया गया । इस मुकदमे में गोपाल नारायण शुक्ल ने  बैकुंठ शुक्लके खिलाफ गवाही दी जिसके पुरष्कार मे अंग्रेजो ने गोपाल नारायण शुक्ल को पुलिस में दरोगा बना दिया । ट्रायल के दौरान बैकुण्ठ शुक्ल ने अपना कोई वकील नही रखा ।जिस वजह से अभियुक्तों के बचाव के लिये जिला मैजिस्ट्रेट ने श्री जे एस बनर्जी को वकील नियुक्त किया गया।अभियुक्तों की ओर से 50 सफाई साक्ष्य की सूची दी गई ।लेकिन एक भी गवाह को पेश करने की अनुमति नही दी गईं
   22 फरबरी 1934 को फैसला, 
    सेसन कोर्ट के चार में से तीन जुड़ी सदस्यो ने बैकुंठ शुक्ल  और चंद्रमा सिंह को फनीन्द्रनाथ नाथ घोष और अन्य को हत्या का दोषी नही माना सिर्फ एक सदस्य ने इन्हें दोषीमाना । लेकिन सेसन जज ने बैकुंठ शुक्ल को फणीन्द्र नाथ घोष और उसके साथी की हत्या का दोषी करार देते हुए फाँसी की सजा सुनाई और दिनक24 फरवरी 1934 को पटना उच्च न्यायालय को सजा कन्फर्मेशन के लिये पत्र लिखा।
 यद्यपि बैकुण्ठ शुक्ल द्वारा है कोर्ट में सजा के खिलाफ कोई अपील नही दाखिल किया गया लेकिन पटना है कोर्ट के माननीय न्यायाधीश ख्वाजा मुहमद नूर आरजे एफ डब्लू जेम्स ने स्तर न्यायाधीश द्वारा प्रेषित उपरोक्त पत्र के आलोक में सुनबाई की गई और माननीय न्यायाधीश महोदय ने अपने आदेश दिनक 17 अप्रैल 1934 द्वारा बौकुंठ शुक्ल को स्तर न्यायाधीश द्वारा सुनाई गई सजा की पुस्टि किया  । चन्द्रमा सिंह को रिहा किया। फांसी की सजा होने के बाद बैकुंठ शुक्ल को गया केन्द्रीय कारा लाया गया जहाँ उन्हें 15 नम्बर कालकोठरी में रखा गया।
   
   14 मई 1934 को फांसी,,
  14 मई 1934 को  क्रांतिवीर बैकुंठ शुक्ल  ने भारत माता की जयघोष के साथ केंद्रीय करा गया में फंसी के फंदे को चुम लिया और देश की वेदी पर अपना जीवन न्योछावर कर दिया। 
जब 14 मई 1934को गया जेल में बैकुण्ठ शुक्ल को फांसी होने वाली थी, उसके एक दिन पहले हीं आश्रम के लोगो के साथ बैकुण्ठ शुक्ल की पत्नी राधिका देवी गया जेल अपने पति से अंतिम बार मुलाकात के लिये पहुंची लेकिन अंग्रेजजेल अधिकारियों ने बैकुण्ठ शुक्ल से उनको अंतिम मुलाकात नही होने दी और 14 मई को फांसी के बाद बैकुण्ठ शुक्ल का शव भी उनको नहीं दी गई।शाम में जेल के कुछ सिपाहियों ने उन्हें बताया कि सरकार के हुक्म पर उन लोगों ने अपने कंधे पर लाद कर बैकुण्ठ शुक्ल की लाश को फल्गू नदी किनारे अंतिम संस्कार कर दिया है। तब भी राधिका जी बिना रोये फल्गू नदी में स्नान कर अपने पति को तर्पण अर्पित कर हाजीपुर लौट आई।
 बैकुण्ठ शुक्ल के शहादत के बाद राधिका देवी के मायकेवाले उन्हें अपने पास ले गए, लेकिन कुछ माह बाद वे पुनः गांधी आश्रम लौट आई। सन 1936 में सुनीति देवी के यक्ष्मा से कालकलवित होने पर राधिका देवी अकेली पर गई। जब योगेंद्र शुक्ल 1937 में कालापानी की सजा से लौटे तब राधिका देवी को मनाकर उन्हें जलालपुर ले आये।
  बैकुण्ठ शुक्ल के चाचा सूरज शुक्ल शिक्षक ने राधिका देवी को ख़ंजहाचक प्राइमरी स्कूल में शिक्षक के रूप में रखवा दिया और राधिका देवी साइकिल से स्कूल आया जाया करती थी। जब देश आजाद हुया तब बिहार के मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह ने राधिका देवी के नाम पहलेजा घाट से बसई तक बस का रोड परमिट दिलवा दिया।
 जिस परमिट पर चांदपुर के राघो बाबू का नीरजा बस चलता था। राघो बाबू आजीवन 1000 रुपया महीना राधिका देवी को देते आए। सन 1969 में राधिका देवी शिक्षक के नौकरी से रिटायर की।सन 1984 में इन्हें स्वतन्त्रता सेनानी का पेंशन मिलना शुरू हुए। राधिका देवी अपने देवर हरिद्वार शुक्ल के चारो लड़के और एक लड़की के साथ रहती आई और उनकी जरूरतों पर रुपया खर्च कर बड़ा होने का फर्ज निभाया।
 राधिका देवी मजफ्फरपुर में वैकुण्ठ शुक्ल का शहीद स्थल निर्माण और गया केन्दीय जेल का नाम शहीद बैकुण्ठ शुक्ल के नाम पर किये जाने के लिए नेताओं के पास दौड़ती रही। इसके लिए उन्होंने मजफ्फरपुर में कई बार सड़को पर धरना भी दिया, लेकिन अपने मन मे पति की याद में मुजफ्फरपुर में स्मारक बनाने का सपना लिये 24 जनवरी 2004 को स्वर्ग सिधार गई।
  राधिका जी का मजफ्फरपुर में अपने पति का शहीद स्थल बनाये जाने का सपना 2017 में पूरा हुआ, जब बैरिया गोलम्बर पर शहीद बैकुण्ठ शुक्ल की आदमकद प्रतिमा लगाई गई।
शहीद बैकुण्ठ शुक्ल  को सम्मान और स्मृति स्थल
1,गया केंद्रीय कारागार का फांसी घर जिस स्थल पर बाबू बैकुण्ठ शुक्ल देश के लिये शहीद उस स्थल को शहीद स्थल के रूप में रखा गया है ।प्रत्येक वर्ष 15 मई को उस स्थल को फूलों से सजाया जाता है और जेल अधिकारियो , कैदियों ओर सामाजिक कार्यकर्तायों द्वारा शहीद बैकुण्ठ शुक्ल की जयंती मनाई जाती है।
2 मुजफ्फरपुर शहर के बैरिया गोलम्बर पर शहीद  बैकुण्ठ शुक्ल की सरकार द्वारा आदमकद कस्यप्रतिमा लगाई गई है जहाँ 14 और 15 मई को शहीद बैकुण्ठ शुक्ल का 14 मई को सहादत दिवस ओर 15 मई को उनकी जयंती मनाई जाती है।
3 ग्राम जलालपुर स्थित शहीद बैकुण्ठ शुक्ल के पैतृक गांव में उनके भतीजे द्वारा सहीद बैकुण्ठ शुक्ल की प्रतिमा स्तापित है जहाँ 14 मई को सामाजिक कार्यकर्तायों द्वारा उनकी शहादत दिवश मनाई जाती है ।इस वर्ष से उक्त शहीद स्थल पर 26 जनवरी को गणतंत्र दिवश के अवशर पर राजकीय झंडोतोलन की शुरुआत हुई है।
4भारत सरकार द्वारा वाजपेयी की सरकार में शहीद बैकुण्ठ शुक्ल और बाबू योगेन्द्र शुक्ल के सम्मान में डाक टिकट जारी हुआ
5 गांधी आश्रम स्थित दीपनारायण सिंह संग्रहालय में जिले के अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों के साथ शहीद बैकुण्ठ शुक्ल की प्रतिमा स्थापित है।
5 हजीपुर ज़ीरो माइल राम आशीष चौक गोलम्बर पर जिले के स्वतंत्रता सेनानियों के नाम एक शहीद स्तम्भ स्थापित हर जिसमें प्रथम नाम बाबू बैकुण्ठ शुक्ल का नाम अंकित है ।
 6 1930 सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गांधी आश्रम हजीपुर में स्वतंत्रता सेनानियों औऱ क्रांतिकारियों की ली गई यादगार सामूहिक तस्वीर जो बैकुण्ठ शुक्ल को क्रांतिकारी साबित करने के लिये फनीन्द्रनाथ घोष हत्या मामले में सत्र न्यायालय मुजफ्फरपुर में साक्ष्य के रूप में पेश हुआ।तस्वीर गांधी आश्रम पुस्तकालय हजीपुर में संरक्षित है।
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 संकलन, संपादन गंगोत्री प्रसाद सिंह अधिवक्ता हजीपुर, वैशाली। स्रोत,, किशोरीबाबू की आत्म कथा राह की खोज,बैकुण्ठ शुक्ल का मुकदमा लेखक श्री ननद किशोर शुक्ला,  बैकुण्ठ शुक्ल के ग्रामीण सामाजिक कार्यकर्ता श अधिवक्ता मुजफ्फरपुर श्री अरुण शुक्लऔर राधिका देवी के साथ हुई बातचीत।